सरकार की लापरवाही से संक्रमण की सुनामी, आम आदमी नहीं राजनेताओं ने बेकाबू किया कोरोना

शमशान घाट के बाहर शवों के अंतिम संस्कार के लिए लगी लंबी कतारें बस स्टैंड पर घरों कि ओर पलायन करते मजदूरों का समूह. देश की गरीब जनता की आँखों में वही दर्द, वही आंसु जो एक साल पहले भी थे.अभी से एक साल पहले कोरोना की पहली लहर देश में प्रभावी थी.चारों तरफ हाहाकार मच गया था.जनता कर्फ़्यू से शुरू हुआ सिलसिला सम्पूर्ण लॉकडाउन तक पहुंचा.
प्रोपोगेण्डा बन गया कोरोना:
दिये जलाते, ताली और थाली बजाते हम वैक्सीन तक पहुंचे.सब कुछ पटरी पर आया ही था कि दूसरी लहर ने धावा बोला और 1 साल पहले कि कहानी फिर दोहराई जा रही. भारत में कुशल प्रबंधन का उधाहरण देती सरकार कि चिकित्सा व्यवस्था क्या इतनी लापरवाह निकली, कि सामने कोरोना संक्रामण के आते हुए मामलों को नज़र अंदाज़ कर गई क्यू एक साल बाद वही स्थितियाँ एक बार फिर सामने आ गई
या कोरोना सिर्फ एक प्रोपोगेण्डा बन गया कि जनता को बेवकूफ बनाया जाए
विशेषज्ञ और डॉक्टर बताते थे दूसरी लहर आना तय था:
अस्पतालों की स्थितियाँ देखें तो हर बड़े अस्पताल में अब बेड नहीं बचे है. ऑक्सिजन की कमी से मरीज दम तोड़ते जा रहे हैं. अस्पतालों के बाहर मरीज तड़प तड़प कर मरते नज़र आ रहे हैं. लेकिन सख्ती की बात करते प्रशासन की यहां सांसे फूलती दिखाई देती है.
पिछले 24 घंटे के दौरान देशभर से 2 लाख 73 हज़ार से ज्यादा नए केस सामने आए हैं, जबकि इस दौरान 1619 लोगों की मौत हुई है. पिछले 12 दिनों में पॉजिटिविटी रेट दोगुनी हो गई है. देश के जाने माने विशेषज्ञ और डॉक्टर बताते हैं दूसरी लहर आना तय था. उन्होंने कहा, ‘पिछले कुछ महीनों में कई मेडिकल बुद्धिजीवियों ने माना था की वायरस और इसका प्रभाव अभी कम है. और इसका पूरी तरह से सफाया नहीं हुआ है. भारत को इस तरह की स्थिति के लिए तैयार रहना चाहिए. कोविड -19 जैसे संक्रमणों में, ये काफी सामान्य है कि वायरस की दूसरी लहर आएगी.
चुनावी रैलियों ने बिगाड़ा कोरोना:
भारत में कोरोना की नई वेरिएंट आ गई है. ये काफी तेज़ी से फैल रही है.
इतनी साफ चेतावनी के बाद भी अपने आप को देश को बचाने वाला बताने वाले यह नेता चुनाव की तैयारी में ऐसे व्यस्त हुए की इतनी बड़ी महामारी को भूल गए. या भारत की व्यवस्था को इतना सुदृढ़ बना लिया था की कोरोना की दूसरी लहर का खतरा खौफनाक नहीं लगा. देश का चौकीदार , सेवक बताने वाले यह कैसे भूल गए की आर्थिक व्यवस्था को बचाने और आत्मनिर्भर बनने की दौड़ में जीवन भी खतरे में आ जाएगा
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