Rajasthan Election 2023: राजस्थान विधानसभा चुनाव 2023 की तारीख नजदीक आने के साथ ही चुनावी सरगर्मियां बढ़ती जा रही है। प्रदेश की 200 विधानसभा सीटों में से भाजपा ने 200 सीटों पर अपने उम्मीदवार घोषित कर दिए हैं। कांग्रेस ने भी 199 सीटों पर उम्मीदवारों का ऐलान करते हुए भरतपुर विधानसभा सीट राष्ट्रीय लोकदल के लिए छोड़ दी है। नामों के ऐलान के साथ बगावत का दौर भी तेज हो गया है। हालांकि, नामां कन भरने के साथ ही सभी प्रत्याशी अपनी अपनी जीत का दम भर रहे हैं।
खैर! इस बार राजस्थान विधानसभा चुनाव कई मायनों में दिलचस्प रहने वाला है। भले ही सत्तारूढ़ कांग्रेस और भाजपा ने अपनी रणनीति के तहत उम्मीदवारों के नाम पर मुहर लगाई हो, लेकिन पार्टी के ‘अपने’ ही अब उनको चुनौती देने चुनावी रण में उतर चुके हैं। दरअसल, टिकट न मिलने से खफा दोनों ही पाटियों के कई दिग्गजों ने निर्दलीय उतरने का ऐलान किया है। इनमें मंत्री, विधायक से लेकर कई वरिष्ठ नेता हैं, जो अपने इलाकों में अच्छा खासा रुतबा रखते हैं। इस कारण चुनावी रण में कई सीटों पर भाजपा कांग्रेस दोनों ही प्रमुख दलों को कड़ी टक्कर मिलने वाली है।
डीडवाना विधानसभा सीट – डीडवाना विधानसभा सीट पर मुकाबला काफी दिलचस्प हो गया है। यहां टिकट नहीं मिलने से खफा भाजपा सरकार में मंत्री रहे यूनुस खान बागी हो गए हैं और निर्दलीय चुनाव लड़ने का फैसला किया है। यूनुस खान पूर्व सीएम वसुंधरा राजे के करीबी माने जाते हैं और पिछले 25 सालों से डीडवाना के राजनीति में लगातार सक्रिय हैं। ऐसे में उनका निर्दलीय चुनाव लड़ना भाजपा के लिए चुनौतीपूर्ण रहेगा। भाजपा ने यहां जीतेंद्र सिंह जोधा को मैदान में उतारा है।
शाहपुरा विधानसभा सीट- भाजपा सरकार में केंद्रीय राज्य मंत्री रहे कैलाश मेघवाल ने बागी तेवर दिखाते हुए निर्दलीय चुनाव लड़ने का ऐलान किया है। कैलाश मेघवाल शाहपुरा से मौजूदा विधायक हैं और इस बार भाजपा से टिकट नहीं मिलने से काफी खफा थे। कैलाश मेघवाल विधानसभा अध्यक्ष के अलावा बीजेपी में राष्ट्रीय उपाध्यक्ष पद पर व टोंक, सवाईमाधोपुर से सांसद भी रह चुके हैं। भाजपा में कैलाश मेघवाल का ऊंचा रहा हैं। मेघवाल पूर्व सीएम वसुंधरा राजे के करीबी माने जाते हैं। भाजपा ने यहां इस बार लालाराम बैरवा को प्रत्याशी बनाया है।
लाडपुरा विधानसभा सीट – कोटा जिले की लाडपुरा विधानसभा सीट राजस्थान की काफी महत्वपूर्ण सीट मानी जाती है। यहां भाजपा के पूर्व विधायक भवानी सिंह राजावत बगावती तेवर दिखाते हुए निर्दलीय चुनाव लड़ने की घोषणा कर चुके हैं। इससे भाजपा को कड़ी टक्कर मिल सकती है। 2018 के चुनाव में भाजपा इस सीट पर 19 से अधिक वोटों से जीती थी। भाजपा ने इस बार लाडपुरा सीट से कल्पना देवी को उम्मीदवार बनाया है।
अजमेर दक्षिण – अजमेर दक्षिण की बात करें तो यहां हेमंत भाटी ने निर्दलीय चुनाव लड़ने का फैसला किया है। हेमंत भाटी दो बार कांग्रेस के उम्मीदवार रह चुके हैं। इस बार यहां कांग्रेस ने हेमंत भाटी का नाम काट दिया। जिसके बाद उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ने का ऐलान किया। जिससे यहां मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है। यहां कांग्रेस ने कांग्रेस उम्मीदवार द्रौपदी कोली को चुनावी मैदान में उतारा है।
झुंझुनू विधानसभा सीट – शेखावाटी की झुंझुनू विधानसभा सीट राजस्थान की राजनीति में अहम स्थान रखती है। यहां भाजपा से बागी हुए राजेंद्र भांबू ने निर्दलीय चुनाव लड़ने के लिए नामांकन दाखिल किया है। जिससे यह सीट भी त्रिकोणीय मुकाबले में फंस गई है। यहां भाजपा ने बबलू चौधरी को चुनाव में उतारा है।
सांचौर विधानसभा सीट – सांचौर चुनाव में भाजपा के लिए चुनौती कम नहीं है। यहां भाजपा के पूर्व विधायक जीवाराम ने निर्दलीय चुनाव लड़ने का फैसला किया है। ना सिर्फ भाजपा यहां कांग्रेस को भी उनके अपने नेता से ही टक्कर मिलेगी। यहां कांग्रेस नेता शमशेर अली ने ताल ठोक रखी है। जिस वजह से यहां मुकाबला चौतरफा हो चुका है।
मनोहरथाना विधानसभा सीट- झालावाड़ जिले की मनोहरथाना विधानसभा सीट पर त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिलेगा। क्योंकि, कांग्रेस के पूर्व विधायक कैलाश मीना बागी हो चुके हैं। टिकट कटने से उनके समर्थक काफी नाराज भी हैं, ऐसे में कांग्रेस की हार जीत का गणित भी बिगड़ सकता है
पुष्कर विधानसभा सीट
अजमेर जिले की पुष्कर विधानसभा सीट पर कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ गई हैं। क्योंकि, यहां कांग्रेस के पूर्व विधायक श्रीगोपाल बाहेती बागी होकर चुनावी मैदान में उतर चुके हैं। क्षेत्र में श्रीगोपाल बाहेती का रुतबा रहा हैं, ऐसे में कांग्रेस प्रत्याशी के लिए यह चुनौती बन सकता है।
डैमेज कंट्रोल में जुटी भाजपा
कांग्रेस भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दलों को डर है कि कहीं उनके अपने ही पार्टी की जीत हार का खेल ना बिगाड़ दे। अब चुनाव होने में समय बेहद कम शेष रह गया है। दोनों दलों के पास डैमेज कंट्रोल के लिए वक्त की कमी है। दोनों ही दल तेजी से बागी हुए अपनों को मनाने में जुटे हुए हैं। हालांकि, दोनों दल यह भी दावा कर रहे हैं कि बागियों से उनके चुनाव परिणाम पर कोई असर नहीं पड़ेगा