Ruma Devi Barmer Rajasthan: 5 साल की उम्र में मां को खोया। दादी के पास रहकर पली-बढ़ी। कई किमी दूर से बैलगाड़ी पर पानी ढोया। आठवीं तक ही पढ़ पाईं। बेइंतेहा गरीबी देखी। पाई-पाई को मोहताज हुईं और बाल विवाह तक का दंश झेला, मगर आज हजारों महिलाओं की तरक्की की उम्मीद बन चुकी हैं। नाम है रूमा देवी। राजस्थान में रूमा देवी का नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं है। भारत-पाकिस्तान सीमा पर बसे बाड़मेर से रूमा देवी ने नारी शक्ति पुरस्कार और हार्वर्ड विश्वविद्यालय में व्याख्यान तक का सफर तय कर लिया। आज हम रूमा देवी का जिक्र इसलिए कर रहे हैं कि इन्होंने महिलाओं के लिए डिजिटल साक्षरता की मुहिम छेड़ रखी है।
बातचीत में सामाजिक कार्यकर्ता और अंतरराष्ट्रीय हस्तशिल्प डिजाइनर डॉ. रूमा देवी कहती हैं कि उनके एनजीओ के ट्रेनर रूपेश कुमार, मोहन लाल व राघाराम बालोतरा व बाड़मेर की गांव-गांव ढाणी-ढाणी जाकर महिलाओं को डिजिटल साक्षर कर रहे हैं ताकि वे अपने उत्पादों की ऑनलाइन बिक्री कर सके। उन्हें ऑनलाइन पेमेंट प्राप्त करने की बेसिक जानकारी हो सके।
जनवरी तक सात हजार का लक्ष्य
रूमा देवी कहती हैं कि बाड़मेर की ग्रामीण विकास एवं चेतना संस्थान और मेक्सॉक्सो ग्रुप के संयुक्त तत्वावधान में राजस्थान के ग्रामीण क्षेत्रों में ‘शी इज डिजिटल इंडिया’ मुहिम नवंबर से शुरू की गई। इसके तीसरे चरण में जनवरी 2024 तक कुल 7 हजार महिलाओं को बेसिक डिजिटल साक्षरता प्रशिक्षण दिया जाना है।
कुल 20 हजार महिलाओं में देंगे प्रशिक्षण
रूमा देवी के अनुसार अभी तक इस मुहिम में 13 हजार 6 सौ महिलाओं को बेसिक डिजिटल शिक्षा प्रदान की जा चुकी है। कुल 20 महिलाओं बेसिक डिजिटल शिक्षा देने का लक्ष्य रखा गया है, जिसे आसानी से पूरा कर लिया जाएगा। इससे पहले बाड़मेर, जैसलमेर व बीकानेर की 22 हजार महिलाओं को हस्तशिल्प उत्पाद तैयार करवाकर रोजगार मुहैया करवाया जा रहा है।